Tuesday 27 December 2011

स्वयम की सोच जगाओ.....देश का सम्मान बढाओ.....


  चार दिन पूर्व मैंने प्रसिद्ध कियी पोस्टमे सप्ताहमें एक दिन हिंदी भाषाका प्रयोग करनेका मन्तव्य प्रकट किया था ! किन्तु काफी लोगोने इसपर आलोचनाके तीर चलाये ! मैंने तो आपसे राय मांगी थी किन्तु आपने पुर्वाग्रह्दुषित प्रतिक्रियाये दियी ! यद्यपि मराठी मेरी मातृभाषा है किन्तु मै मराठी जितनाही हिन्दिका सम्मान करता हूँ ! हर भाषा की तरह हिंदिकी भी अपनी विशेषताए है,सुन्दरता है,सरलता है ! किन्तु मुज़तक आई प्रतिक्रियायोंमेसे यहाँ बात साफ़ हुई की हमारे समाजमे भाषा को लेकर काफी असमंजस फैला हुवा है ! विशेषकर कुछ एक राजनैतिक दल ईस बातका गलत फायदा उठाकर अपनी रोटिय सेंक रहे है ! कुछ लोगोने मेरे विधानको मराठिका अपमान समज़ा, तो कुछ्ने ईस बातको लेकर बेवजहही हिन्दिपर अपना गुस्सा उतरा ! कुछ्ने तो हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हो ही नहीं सकती यहातक कह डाला ! उन सभी महानुभावोंसे मेरा नम्र अनुरोध है की वे अपने अध्ययन ,आकलन तथा समजका दायरा बढ़ाये ! दक्षिणी भारतके लोग कथित आर्य-द्रविड़ विवाद के कारण हिन्दीको विरोध करते है तो हमभी उनकी नक़ल करे यहाँ कहातक सही है ? 
     दूसरा प्रश्न यह है की इंग्लेंडके युवराज पन्चम जोर्ज की भारत आगमन पर स्वागतगीतके रूपमे गया गया था वह स्वाधीनता संग्रामके महामंत्र वन्दे मातरम की जगह राष्ट्रगीत बन सकता है, हमारी अनादी संस्कृतिका प्रतीक केसरिया ध्वज हटाकर पश्चिमी देशोकी भ्रष्ट नक़ल वाला तिरंगा हम राष्ट्रिय निशान के रूपमे स्वीकार कर सकते है , तो देशमे सर्वाधिक लोगोंकी तथा सर्वाधिक प्रयोगमे लाये जानी वाली हिन्दी को राष्ट्र भाषाके रूपमे क्यों नहीं अपना सकते यहतो गोरे तथा काले अन्ग्रेजोका ( कोंग्रेस,कम्युनिस्ट तथा हिंदुविरोधी ताकते) षड्यंत्र है की देशमे भाषा,प्रान्त,जाती एवम धर्मके नाम पर खूनकी नदिया बहे,घर जले,इन्सान मरे ! हमारे संविधान की धरा ३४३ के खण्ड १ में बड़े स्पष्ट रूपसे लिखा गया है की " संघराज्य की राजभाषा देवनागरी लिपिमे लिखी जानेवाली हिन्दी है " किन्तु दुसरेही खण्ड में " संविधान लागु होनेसे १५ वर्षो तक तथा इससे पूर्व जिन कारणों के लिए अन्ग्रेजिका प्रयोग किया जाताथा वह यथास्थिति जारी रहेगा " ऐसा भी उल्लेख किया गया है ! यह हमारा दुर्भाग्य है की अबतककी निकम्मी सरकारोने ईस धारामें संशोधन करनेकी हिम्मत नहीं जुटाई ! 
     मै और एक नुकीला प्रश्न पूछना चाहता हु , की मराठी का गला कौन घोट रहा है ? यु.पि.के भय्या या साऊथ के अन्ना ? असलमे इनमेसे कोईभी नहीं बल्कि हमही हमारी मातृभाषा को कमजोर बना रहे है ! हमारे मराठी फ़िल्मी-नाट्य कलाकार,क्रिकेट खिलाडी तथा साहित्यिकोंको बोलते हुवे देखिये उनके मुहसे अन्ग्रेजिही छलकेगी ! ' मराठी मानुस'  के नामपर राजनीती करनेवाले राजनेताओंके  अभिभावक अंग्रेजी स्कुलोमे पढ़ते हुवे दिखेंगे ! मुजपर मराठी विरोध का आरोप  करनेवाले लोग जाकर उन सेलिब्रेटीजको क्यों नहीं पूछते की आप लोगोंको मराठी शब्द स्मरण में लानेमे ईतने कष्ट क्यों लगते है ? आपकी मातृभाषा तो मराठी है फिरभी आप सार्वजानिक तौरपर मराठी का प्रयोग करते समय ईतना लज्जित क्यों होते हो ? मुज़े पता है के यह बात पूछने की हिम्मत शायद ही कोई दिखा पायेगा !
     अन्तमे उन लोगोसे मै यही कहूँगा की स्वयम की सोच जगाओ.....देश का सम्मान बढाओ..... आज बस ईतना ही !

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